18 months DA arrear भारत सरकार द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को महंगाई से राहत देने के लिए हर छह महीने में महंगाई भत्ते (DA) में वृद्धि की जाती है। यह प्रक्रिया कर्मचारियों के वेतन को मुद्रास्फीति के अनुरूप समायोजित करने में मदद करती है।
परंतु कोविड-19 महामारी के दौरान, आर्थिक संकट के चलते सरकार ने जनवरी 2020 से जून 2021 तक 18 महीनों के लिए DA वृद्धि को स्थगित कर दिया था। हालांकि जुलाई 2021 से DA में बढ़ोतरी फिर से शुरू कर दी गई थी, लेकिन उन 18 महीनों का एरियर अभी तक नहीं दिया गया है, जिससे केंद्रीय कर्मचारियों में असंतोष पैदा हो रहा है।
कोविड काल में DA स्थगित करने का निर्णय
2020 की शुरुआत में, जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया, भारत सरकार को भी अप्रत्याशित आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप होने से राजस्व में भारी गिरावट आई, जबकि स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर खर्च बढ़ गया।
इस आर्थिक दबाव के बीच, सरकार ने 23 अप्रैल, 2020 को एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। वित्त मंत्रालय ने एक आदेश जारी करके केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के DA में वृद्धि को 1 जनवरी, 2020 से 30 जून, 2021 तक स्थगित कर दिया। इस अवधि के दौरान, कर्मचारियों को उनके मूल वेतन का 17% DA मिलता रहा, जबकि इस दौरान तीन वृद्धियां होनी थीं जो कुल 31% तक पहुंच जाती।
वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने गुमनाम रहने की शर्त पर बताया, “महामारी की अनिश्चितता के बीच, सरकार को राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करनी थी। DA स्थगित करने का निर्णय दुखद था, लेकिन उस समय आवश्यक था। इससे सरकार को लगभग ₹38,000 करोड़ की बचत हुई, जिसका उपयोग स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और गरीब परिवारों के लिए राहत पैकेज में किया गया।”
कर्मचारियों पर प्रभाव
इस निर्णय ने लगभग 48.34 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 65.26 लाख पेंशनभोगियों को प्रभावित किया। जबकि सरकार ने इसे एक अस्थायी उपाय बताया, कर्मचारियों ने इसे अपने अधिकारों पर हमला माना।
दिल्ली में कार्यरत वरिष्ठ सरकारी अधिकारी रमेश शर्मा (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “हम समझते हैं कि देश संकट में था, और हम सभी ने अपना योगदान दिया। लेकिन महामारी के दौरान हमारे खर्चे बढ़े थे – बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा के लिए गैजेट्स, अतिरिक्त स्वास्थ्य खर्च, और महंगाई। ऐसे में DA का स्थगित होना हमारे परिवारों के लिए दोहरी मार थी।”
एक अनुमान के अनुसार, 18 महीनों के दौरान औसत केंद्रीय कर्मचारी को लगभग ₹2 लाख से ₹5 लाख तक का वित्तीय नुकसान हुआ, वेतन ग्रेड के आधार पर। पेंशनभोगियों के लिए यह नुकसान ₹1 लाख से ₹3 लाख के बीच रहा।
जुलाई 2021 के बाद की स्थिति
जुलाई 2021 से, सरकार ने DA में वृद्धि को फिर से शुरू कर दिया। वर्तमान में, केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को 50% DA मिल रहा है। लेकिन 18 महीनों के दौरान जो वृद्धि होनी थी, उसका एरियर अभी तक नहीं दिया गया है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि इस अवधि का एरियर देने का कोई प्रस्ताव नहीं है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “स्थगन का निर्णय एक नीतिगत फैसला था। इसका उद्देश्य DA को कम करना नहीं, बल्कि उस अवधि के लिए वृद्धि को रोकना था। इसलिए एरियर का सवाल ही नहीं उठता।”
कर्मचारी संगठनों की मांगें
कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉइज एंड वर्कर्स (CCGEW) ने इस मुद्दे पर लगातार आवाज उठाई है। मार्च 2025 में जारी एक सर्कुलर में, संगठन ने 18 महीनों के DA एरियर के भुगतान की मांग के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण मांगें भी रखी हैं:
- 18 महीनों का DA एरियर तत्काल जारी किया जाए
- 8वें वेतन आयोग का गठन किया जाए और जल्द से जल्द अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति की जाए
- नई पेंशन योजना (NPS) को समाप्त करके पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल किया जाए
- पेंशन के लिए सेवा अवधि 15 वर्ष से घटाकर 12 वर्ष की जाए
- अनुकंपा नियुक्ति की 5% सीमा को हटाया जाए
- रिक्त पदों को भरा जाए और आउटसोर्सिंग तथा निजीकरण पर रोक लगाई जाए
CCGEW के महासचिव एम. कृष्णन का कहना है, “कोविड के दौरान, सरकारी कर्मचारियों ने अपने जीवन को जोखिम में डालकर देश की सेवा की। इसके बावजूद, हमारे अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। 18 महीनों का DA एरियर हमारा अधिकार है, कोई भिक्षा नहीं।”
सरकार का रुख
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने अनौपचारिक रूप से यह स्पष्ट कर दिया है कि 18 महीनों के DA एरियर का भुगतान करना वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों में संभव नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, इस एरियर का भुगतान करने के लिए सरकार को लगभग ₹1.3 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, “हम समझते हैं कि कर्मचारियों की मांग उनके दृष्टिकोण से उचित है, लेकिन सरकार को व्यापक आर्थिक चित्र को देखना होता है। हमने पहले ही महामारी के दौरान बड़े राहत पैकेज जारी किए, और अब अर्थव्यवस्था को स्थिर करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।”
न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना
कुछ कर्मचारी संगठनों ने इस मुद्दे को न्यायालय में ले जाने की बात की है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जो श्रम कानून के विशेषज्ञ हैं, का कहना है, “यह एक जटिल मामला है। एक तरफ, DA कर्मचारियों का अधिकार है, न कि कोई विशेषाधिकार। दूसरी ओर, सरकार आपात स्थितियों में कुछ वित्तीय निर्णय लेने का अधिकार रखती है।”
उन्होंने आगे कहा, “अदालतें आमतौर पर सरकार के नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप करने से बचती हैं, लेकिन अगर यह साबित हो जाए कि निर्णय मनमाना या असंवैधानिक था, तो न्यायिक हस्तक्षेप संभव है।”
आंदोलन की संभावना
CCGEW और अन्य कर्मचारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो वे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। संगठन के नेतृत्व ने मई 2025 में एक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
“हमने लंबे समय से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखी हैं, लेकिन अब धैर्य खत्म हो रहा है,” CCGEW के अध्यक्ष ने कहा। “अगर सरकार हमारी आवाज नहीं सुनती, तो हमारे पास विरोध प्रदर्शन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।”
समाधान की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि इस गतिरोध का समाधान सरकार और कर्मचारी संगठनों के बीच सार्थक संवाद से ही निकल सकता है। पूर्व वित्त सचिव और अर्थशास्त्री डॉ. सुभाष चंद्र ने सुझाव दिया है कि सरकार चरणबद्ध तरीके से एरियर का भुगतान कर सकती है।
“एकमुश्त भुगतान राजकोषीय रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन सरकार 3-4 वर्षों में किश्तों में भुगतान करने पर विचार कर सकती है,” उन्होंने कहा। “यह कर्मचारियों को कुछ राहत देगा और सरकार पर वित्तीय दबाव भी कम होगा।”
18 महीनों के DA एरियर का मुद्दा केंद्रीय कर्मचारियों और सरकार के बीच एक प्रमुख विवाद बना हुआ है। कर्मचारियों के लिए, यह उनके अधिकारों का मामला है, जबकि सरकार के लिए यह राजकोषीय प्रबंधन का विषय है।
आगे की राह चुनौतीपूर्ण दिखाई देती है। एक ओर, कर्मचारी संगठन अपनी मांगों पर अडिग हैं और विरोध प्रदर्शन की धमकी दे रहे हैं। दूसरी ओर, सरकार ने अब तक किसी भी समझौते का संकेत नहीं दिया है।
अंततः, इस विवाद का समाधान दोनों पक्षों की इच्छाशक्ति और समझौते की भावना पर निर्भर करेगा। कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे, जबकि सरकार को भी आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित निर्णय लेना होगा। बेहतर होगा कि इस मुद्दे का समाधान तेजी से निकाला जाए, क्योंकि यह न केवल लाखों कर्मचारियों के जीवन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि प्रशासनिक कार्यक्षमता पर भी असर डाल सकता है